शेरशाह शुरी (शूरी वंश) का इतिहास / Shersah ka itihas

परिचय   - शेरशाह शूरी का  जन्म इतिहासकार परमात्माशरण के अनुसार 1442 ई. में हुआ था जबकि इतिहासकार कानूनगो का मानना था उनका जन्म 1486 ई . में...

परिचय  

- शेरशाह शूरी का  जन्म इतिहासकार परमात्माशरण के अनुसार 1442 ई. में हुआ था जबकि इतिहासकार कानूनगो का मानना था उनका जन्म 1486 ई. में हुआ था। 

- शेरशाह के पिता का नाम हसन खां था। 

- शेरशाह का बचपन का नाम फरीदखान था और उसने अपनी शिक्षा जौनपुर से की थी। 

- शेरशाह ने 1497 ई. से 1518 ई. तक अपने पिता की जागीर को संभाला था। 

- इसके बाद उसने दक्षिण बिहार के सूबेदार बहारखा लोहानी के यहाँ नौकरी की थी उन्होंने शेरशाह को शेरख़ाँ की उपाधि से भी नवाजा था। 

- बहारखां ने मुहम्मद शाह के नाम से खुद को दक्षिण बिहार का स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया था। 

- इसके बाद शेरशाह सूरी (शेरख़ाँ) मुग़ल शासक बाबर की सेना में चला गया था। 

- परन्तु फिर से शेरशाह, मुहम्मद शाह (बहारखां) के पास आ गया और उसके पुत्र जलाल खां का संरक्षण करने लगा था। 

- कुछ समय बाद बहारखां की मृत्यु होने के बाद उसकी बेगम से शेरशाह ने निकाह कर लिया था और प्रधान बन गया था। 

बहारखां का पुत्र बंगाल भाग जाता है जिसके बाद शेरशाह सूरी दक्षिण बिहार का असली शासक बन गया था। 

- शासक बनने के बाद शेरशाह ने हजरत-ए-आला की उपाधि लो थी। 

- 1530 ई. में शेरशाह ने चुनार के सूबेदार तानखां की विधवा से विवाह करके चुनार के किले पर अपना अधिकार कर लिया था। 

शेरशाह का प्रारंभिक संघर्ष 

- 1532 ई. में शेरशाह ने दोहरिया युद्ध में महमूद लोदी का सहयोग किया था। 

- हुमायु ने 1532 ई. में चुनार के किले को घेर लिया था जिसमे दोनों द्वारा संधि कर ली गई थी जिसमे शेरशाह ने अपने पुत्र कुतुबखां को  मुग़ल शासक हुमायु की खिदमत में भेजा था। 

- शेरशाह ने 1534 ई. में बंगाल पर अपना अधिकार कर लिया था। 

- शेरशाह ने 1540 ई. में कन्नौज / बिलग्राम के युद्ध जो मुग़ल शासक हुमायु के साथ हुआ था जिसमे जीत के बाद सूरवंश की स्थापना की थी।    

- सूरवंश का काल 1540 ई. से 1555 ई. के मध्य तक चला था। 

- दिल्ली में सूरवंश दूसरा अफगान वंश था इस से पहले लोधी वंश भी अफगानी वंश था। 

साम्राज्य विस्तार 

- उसने 1541 ई. में गख्कर प्रदेश को अपने अधिकार म ले लिया था बाद में 1541 ई. में ही बंगाल के विद्रोह को दबाया था। 

- मालवा  के शासक ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। 

- 1543 ई. में उसने रायसीन के राजा पूरणमल को धोके से मार दिया था। 

- 1544 ई. में उसने राजा मालदेव के राज्य जयपुर पर कब्ज़ा कर लिया था। 

- परन्तु मारवाड़ खुद को 1545 ई. में खुद को स्वतंत्र कर लेते है। 

इस्लाम शाह सूरी की मृत्यु कब कहा और कैसे 

- शेरशाह ने कालिंजर युद्ध जो कि राजा कीरत सिंह के विरुद्ध था जिसमे उसने आग के गोले बरसाए थे जो उल्टा आकर उसको लगा था। 

- इस युद्ध में शेरशाह जीत गया था परन्तु उसकी मृत्यु हो गई थी। 

- 22 मई 1545 ई. को उक्का नामक अग्नेयास्त्र (तोप) के कारण उसकी मृत्यु हुई थी। 

- शेरशाह सूरी का यह  कन्नौज / बिलग्राम युद्ध अंतिम अभियान था जिसमे उसकी मृत्यु हो गई थी।  

शेर शाह सूरी का उत्तराधिकारी 

- शेरशाह की इच्छा थी उसका पुत्र आदिल खा उसका उत्तराधिकारी बने जो उसका बड़ा पुत्र भी था। 

- परन्तु सरदार मुहम्मद शाह (बहारखां) के पुत्र जलालखां को सूरी वंश का अगला शासक बनाना चाहते थे। 

- बाद में जलालखां (इस्लामशाह) को ही अगला शासक घोषित किया गया। 

- इस्लामशाह की मृत्य बीमारी के कारन 1553 ई. में हुई थी। 

- उसके बाद उसका 12 वर्षीय पुत्र फिरोजशाह शासक बना परन्तु तीन दिन बाद उसके मामा आदिल ने उसकी हत्या कर खुद को राजा घोषित किया। 

- सूर साम्राज्य बाद में पांच भागो में विभाजित हो गया था और कमजोर भी। 

NOTE - मुगल शासक हुमायु ने दोबारा आकर आक्रमण किया (सरहिंद युद्ध) जिसमे हुमायु ने सिकंदर शाह को पराजित किया और दोबारा  मुग़ल वंश की स्थापना की।  


शेरशाह सूरी का प्रशासन , अर्थव्यवस्था, सैनिक व्यवस्था 


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