दक्षिण भारत का इतिहास / History Of South India क्या है विस्तार से बताइये (द्वितीय भाग)

   परिचय   - जब उत्तर भारत मे पहले गुप्त साम्राज्य और  गुप्तकाल (319 -540) AD   के बाद उत्तर भारत मे  वर्धन वंश (590- 647) AD  दौर चल रहा था...

दक्षिण भारत का इतिहास

  परिचय 

 - जब उत्तर भारत मे पहले गुप्त साम्राज्य और गुप्तकाल (319 -540) AD  के बाद उत्तर भारत मे वर्धन वंश (590- 647) AD दौर चल रहा था उस समय दक्षिण भारत मे कुछ राजवंश उभर रहे थे। 

 - दक्षिण भारत के इन राजवंशो का कार्यकाल लगभग (500-1200) AD के मध्य का माना जाता है। 

 - जो राजवंश दक्षिण भारत मे उभर कर आये थे वो इस प्रकार है - पल्लव वंश, वातापी चालुक्य , वेंगी चालुक्य , राष्ट्रकूट , चोल , कल्याणी चालुक्य। 


(1) पल्लव वंश (575 - 844) 

पल्लव वंश के संस्थापक सिंह विष्णु थे , जो एक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे। 

- पल्लव वंश की राजधानी कांचीपुरम थी जो वर्तमान मे तमिलनाडु मे है। 

- सिंह विष्णु ने अपने राज्य की सीमा का विस्तार कावेरी नदी तक कर लिया था। 

- सिंह विष्णु ने मालापुरम मे आदिबराह गुह मंदिर का निर्माण कराया था। 

किरातार्जुनियम के  लेखक भावी भारवि सिंह विष्णु के दरबार मे रहते थे। 

- सिंह विष्णु के बाद महेन्द्र बर्मन शासक बने , इन्होने मतविलास प्रहसन की रचना की। 

नरसिंह बर्मन प्रथम इस वंश के सबसे शक्तिशाली राजा थे , इन्होने चालुक्य से वातापी को जीतकर वातापी कोण्ड  की उपाधि धारण की थी। 

नरसिंह बर्मन प्रथम ने महाबली पुरम मे रथमंदिरो का निर्माण कराया था जिनकी संख्या सात है। 

- पल्लव वश के शासकाल मे कांची मे कैलाश मंदिर / राजसिद्धेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ था।  

कैलाश मंदिर / राजसिद्धेश्वर मंदिर  से द्रविड़ स्थापत्य कला की शुरुआत हुई थी। 

 नागर शैली - उत्तर भारत की मंदिरो और भवन की शैली 

द्रविड़ शैली -  दक्षिण भारत की शैली 

वेसर शैली - मध्य भारत की शैली 


 पल्लव वंश के शासक क्रमश: 

(a) सिंह विष्णु - इनका शासनकाल 575 -600 ई० के मध्य रहा था 

(b)महेन्द्र बर्मन प्रथम -  (606 -63 )ई० 

(c) नर सिंह बर्मन प्रथम -   (630 - 668)  ई०

(d) महेन्द्र बर्मन द्वितीय -   (668- 670 ) ई०

(e) परमेश्वर बर्मन प्रथम -      ( 670- 695ई०

(f) नरसिंह बर्मन द्वितीय - (695- 722)   ई०

(g) नंदी बर्मन द्वितीय -  (731- 795 )  ई०

(h) दंपत बर्मन प्रथम -  (795- 844)   ई०


(2) राष्ट्रकूट वंश 

राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 752 ई०  मे दन्तिदुर्ग ने की थी और अपनी राजधानी मान्यखेत को बनाया था। 

    प्रमुख शासक -    कृष्ण प्रथम , ध्रुव , गोविन्द , अमोघवर्ष , कृष्णा द्वितीय , कृष्णा तृतीय

   - कृष्णा प्रथम ने एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कराया था। 

-  - औरंगाबाद (महाराष्ट्र) मे एकाश्म मंदिर का निर्माण भी इसी काल मे हुआ था। 

-  -  राष्ट्रकूट वंश कन्नौज के लिए हुए त्रिपक्ष संघर्ष मे पाल और प्रतिहार वंश के साथ था। 

   - इस वंश का अंतिम शासक कृष्णा तृतीय था इन्ही के दरबार मे कन्नड़ कवि रहते थे जिन्होंने शांतिपूर्ण की रचना की थी। 

   - तैलप द्वितीय (कल्याणी चालुक्य) ने राष्ट्रकूटों को हराकर विजय स्थापित करने के बाद कल्याणी के चालुक्य वंश की  न       स्थापना की थी।  

   - राष्ट्रकूट वंश विभिन्न धर्मो को मानते थे जैसे - शैव धर्म , वैष्णव धर्म , जैन और बौद्ध धर्म। 

   - एलोरा और एलिफेंटा (महाराष्ट्र) गुफा मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने कराया था। 

   - एलोरा की गुफाओ की संख्या 34 थी जिनमे 1 से 12 तक की  गुफाये बौद्ध धर्म से सम्बंधित है। 

   - जबकि 13 से 29 तक की गुफाएं हिन्दू धर्म से सम्बंधित है और 30 से 34 तक की गुफाये जैन धर्म से सम्बंधित है।  

   - एलोरा की गुफाओ का सर्वप्रथम उल्लेख फ़्रांसिसी यात्री भेवियन ने किया था। 


(3) चालुक्य वंश 

दक्षिण भारत का मैप

  वातापी के चालुक्य 

वातापी के चालुक्य वंश  के संस्थापक जय सिंह थे और इनकी राजधानी वातापी / बादामी थी। 

पुलकेशिन द्वितीय इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था , इसकी जानकारी ऐहोल अभिलेख से मिलती है। 

पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को पराजित किया था परन्तु इसको पराजित नरसिंह बर्मन प्रथम ने किया था। 

- इस राजा के समय ही वेंगी के चालुक्य वंश स्थापित हुआ था। 

- वातापी के चालुक्य का अंतिम शासक कीर्ति बर्मन था जिसको राष्ट्रकूटों ने हराया था।

 

वेंगी के चालुक्य वंश 

- इस वंश का शासनकाल 615  ई. मे शुरू हुआ था 

इस वंश का संस्थापक विष्णुवर्धन और इनकी राजधानी वेंगी (वर्तमान आंध्रप्रदेश) है। 

- इस वंश का शासन कृष्णा और गोदावरी नदी के मध्य के भाग पर था। 

- विजयादित्य तृतीय वेंगी वंश का सबसे प्रमुख शासक था। 


कल्याणी के चालुक्य 

-   इस वंश के संस्थापक तैलब द्वितीय था और इनकी राजधानी मान्यखेत / कल्याणी था।  

- कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना राष्ट्रकूटों को हराने के बाद हुई थी। 

- इस वंश का सबसे प्रतापी राजा विक्रमादित्य चतुर्थ थे। 

- मिताक्षरा (हिन्दू विधि ग्रन्थ)  की रचना विधिवेत्य विज्ञानेश्वर ने की थी, जो कल्याणी के चालुक्य के समय थे। 



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