जैन धर्म का इतिहास क्या है , और जैन धर्म के के संस्थापक कौन है ?

- आज के ब्लॉग मे हम प्राचीन इतिहास के टॉपिक से जैन धर्म को  इतिहास विस्तार से पढ़ेंगे  प्राचीन भारत में दो धर्मो की शुरुआत हुई थी जिनमे एक ब...


जैन धर्म का इतिहास



- आज के ब्लॉग मे हम प्राचीन इतिहास के टॉपिक से जैन धर्म को  इतिहास विस्तार से पढ़ेंगे 
प्राचीन भारत में दो धर्मो की शुरुआत हुई थी जिनमे एक बौद्ध धर्म और दूसरा जैन धर्म था। 
- दोनों में कुछ कुछ समानताये थी परन्तु दोनों अलग-अलग थे। 

परिचय 

-  जैन धर्म आस्तिक समुदाय मे आता है जिसमें मनुष्य मानवता मे विश्वास करता है परन्तु भगवान मे विश्वास नहीं करता है। 

जैन धर्म के पहले संस्थापक 

- जैन धर्म के संस्थापक (प्रथम ) ऋषभदेव थे।  ऋषभदेव को आदिनाथ या वृषभनाथ के नाम से भी जाना जाता है। 

- जैन धर्म के कुल 24 तीर्थंकर हुए, जो इस प्रकार है -
(1 ) ऋषभदेव    (2 )अजितनाथ   (3 ) सम्भवनाथ     (4 ) अभिनन्दन नाथ     (5 ) सुमित नाथ   (6 ) पद्मप्रभु जी 
(7 ) सुपाश्र्वनाथ जी   (8 ) चन्द्रप्रभु जी   (9 ) सुविधिनाथ जी      (10 )शीतल नाथ जी     (11 )श्रेयांशनाथ जी              (12 )वासुपूज्य जी     (13 )विमलनाथ जी      (14 ) धर्मनाथ जी      (15 ) अनंतनाथ जी     (16 ) शांतिनाथ जी 
(17 ) कुन्थु नाथ जी    (18 )  आरनाथ जी   (19 ) मल्लिनाथ जी    (20 ) मुनिसुव्रत जी    (21 ) नमिनाथ जी               (22 )  अरिष्टनेमि जी (23 ) पाशर्वनाथ जी (24 ) महावीर जी 


पाशर्वनाथ जी - इनका जन्म काशी(वाराणसी ) मे हुआ था इनके पिता का नाम अश्वसेन जो काशी के राजा थे। 
इनको ज्ञान की प्राप्ति संमेध पर्वत पर 30 वर्ष की आयु मे हुई थी। 
 
पाशर्वनाथ जी ने चार शिक्षाए दी -  
(1 ) सत्य  (2 )अहिंसा  (3 ) आस्तेय  (4) अपरिग्रह 

- बाद मे 24 वे तीर्थकर महावीर भगवान ने इन शिक्षाओं मे एक बृमचर्य भी जोड़ दी जिनको जैन धर्म के पांच महाव्रत कहा गया। 

महावीर स्वामी -  ये जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर है इनको जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक भी कहा गया है। 
- इनका जन्म 540 BC मे कुंडग्राम / वैशाली मे हुआ था उनकी मृत्यु 468 BC मे पावापुरी मे 72 वर्ष की आयु मे हुआ था। 
- उनका बचपन का नाम वर्धमान था इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञात्रिक कुल से थे।  इनकी माता का नाम त्त्रिशाला था जो राजा चैतक की बहन थी। 
- इनकी पत्नी का नाम यशोधा था जिनसे इन्हे एक पुत्री थी इनका नाम प्रियदर्शनी था। 
- इन्होने 30 वर्ष की आयु मे बड़े भाई नन्दिवर्धन से आज्ञा लेकर ग्रह त्याग किया था। 
- इनको ज्ञान प्राप्ति12 वर्ष बाद ग्राम जाम्भिक , शाल के वृक्ष के नीचे , ऋजुपलिका नदी के तट पर हुई। 
- ज्ञान की प्राप्ति के बाद कैवल्य कहा गया। 

महावीर जी को कई नाम से पुकारा गया -  
जिन -     विजेता 
अहर्त -    योगी 
निगर्थ -     बंधन रहित 
महावीर -    साधना के प्रति समर्पण 

महावीर जी के उपदेश एवं शिक्षाए 
- इन्होने अपना पहला उपदेश राजग्रह मे दिया इनके पहले शिष्य जामिल / जमालि थे 
-  महावीर स्वामी जी का कहना था कि संसार दुखमय है तथा दुःख का कारन कर्मफल है। 

दुःख से मुक्ति के लिए उन्होने त्रिरत्न मार्ग बताये -
(1 ) सम्यक दर्शन -        सत्य मे विश्वास 
(2 ) सम्यक ज्ञान -         वास्तविक ज्ञान 
(3 ) सम्यक आचरण -    सुख दुःख मे सामान  भाव 
   

-  अपने पांच महाव्रतो मे उन्होने अहिंसा को सबसे महत्वपूर्ण बताया है। 
- महवीर स्वामी आत्मा , पनर्जन्म , कर्म , मोक्ष मे विश्वास करते थे। 
   
जैन धर्म की सभाएं -   जैन धर्म की 2 सभाएं हुई 
 (1)  जैन धर्म की प्रथम सभा 4 BC मे  पाटलिपुत्र मे  स्थूलभद्र की अध्यक्षता मे हुई। इस सभा की मुख्य विशेषता है की इसी दौरान जैन साहित्य मे प्रसिद्ध 12 अंगो का संकलन किया गया। 
(2 ) जैन धर्म जैन की द्वितीय सभा 6 AD (512 ) मे , वल्लभी गुजरात ,मे , देवर्धिगण/ छामाश्रिवन  की  अध्यक्षता मे हुई। 

- महावीर स्वामी ने एक संघ की स्थापना की थी जिनके सदस्य 11 थे इस संघ को गणधर कहा गया उनकी मृत्यु के बाद सुधर्मन इस संघ के प्रमुख बने। 

 जैन धर्म का दो वर्गों मे विभाजन हो गया था -  चन्द्रगुप्त के शासन के दौरान 
 (1 ) स्वेताम्बर -    इस धर्म के संस्थापक स्थूलभद्र को माना गया इस मे बदलाव को स्वीकार किया गया। 
इसमें श्वेत कपडे पहने जाते है। इस धर्म मे स्त्री को भी मोक्ष की अनुमति दी गयी थी।, इसमें महावीर स्वामी की मूर्ति की पूजा की गयी थी।  
 (2 ) दिगंबर -    इसके अध्यक्ष भद्रबाहु थे और ये किसी बदलाव को स्वीकार नहीं करते है और पूर्ण नग्न रहते है , इसमें स्त्री को मोक्ष संभव नहीं है और इस धर्म के अनुसार महावीर जी एक आम मनुष्य थे। 

जैन धर्म के तीर्थंकर के प्रतीक चिन्ह 
  ऋशभदेव -    बैल / वृषभ 
अजितनाथ -    हाथी 
पाशर्वनाथ -    सर्प 
महावीर -       सिंह 

जैन साहित्य - जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार प्राकृत भाषा मे किया गया , परन्तु साहित्य अर्धमागधी भाषा मे लिखे गए। 
  अंग -  जैन धर्म का प्रमुख ग्रन्थ माना गया इनकी संख्या 12 है इनमे जैन के सिद्धांत लिखे गए है। 
 उपांग -  इनकी संख्या 12 है इनमे अंग का विस्तार किया गया है। 
 प्रकीर्ण - इनकी संख्या 10 है इनम, ग्रंथो का परिशिष्ट किया गया है। 
 छेदसूत्र - इनकी संख्या 6 इनमे भिक्षुओ के लिए नियम के उल्लेख किया गया है। 
 मूलसूत्र - इनकी संख्या 4 

- जैन साहित्य को आगम के नाम से जाना जाता है। 

भगवती सूत्र - 
इस ग्रन्थ से 16 महाजनपदों की जानकारी मिलती है और महावीर और अन्य जैन मुनियो के जीवन चरित्र के बारे मे जानकारी मिलती है। 

कल्पसूत्र - इसकी रचना भद्रबाहु ने की हिअ इसमें जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास की जानकारी मिलती है।  

- मथुरा शैली जैन धर्म से सम्बंधित है। 
- खजुराहो मंदिर यह मध्य प्रदेश मे है जो जैन और हिन्दू दोनों से सम्बंधित है। 
- माउंट आबू पर दिलबरा का मंदिर जो राजस्थान मे है जैन धर्म से सम्बंधित है। 

जैन धर्म का पतन 
- जैन धर्म और ब्रह्मणो में गहरा मतभेद ही जैन धर्म के पतन का मुख्य कारण बना था। 

Thanks........