परिचय - आज के ब्लॉग मे हम सिंधु सभ्यता के बारे मे विस्तार से अध्यन करेंगे और इसके प्रमुख स्थलों को भी जानेंगे। - सिंधु सभ्यता के बाद...
परिचय -
आज के ब्लॉग मे हम सिंधु सभ्यता के बारे मे विस्तार से अध्यन करेंगे और इसके प्रमुख स्थलों को भी जानेंगे।
- सिंधु सभ्यता के बाद सबसे दूसरी बड़ी सभ्यता वैदिक सभ्यता
सिंधु सभ्यता - प्राचीन इतिहास में सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्रमुख सभ्यताओं मिस्र की सभ्यता ,मेसोपोटामिया की सभ्यता,चीन की सभ्यता मे एक मानी जाती है।
- सिंधु सभ्यता की जानकारी से पहले वैदिक सभ्यता को भारत की प्राचीन सभ्यता माना जाता था। इस सभ्यता की खोज ब्रिटिश काल मे शुरू हुई थी।
- इस सभ्यता से हमे कोई लिखित स्रोत्र है भी तो उनको पढ़ा नहीं जा सका है।
खोज
- चार्ल्स मेसन नाम के एक ब्रिटिश व्यक्ति ने 1826 ईशवी पाकिस्तान का दौरा किया जिसमे इन्होने दौरे के दौरान हड्डपा नामक जगह पर किसी सभ्यता के होने का अनुमान लगाया था।
- इन्होने अपनी ब्रिटिश पत्रिका (narrative of jaurney) मे ये पहली बार पब्लिश किया कि हड्डपा मे कोई सभ्यता होने के अनुमान है।
- 1856 ईशवी के दौरान पाकिस्तान की दो जगह कराची और लाहौर के बीच मे रेलवे लाइन बनते समय दो ब्रिटिश इंजीनियर भाई जेम्स बर्टन और विलियम बर्टन (बर्टन बंधु) के नेतृत्व मे इन्होने वहा से ईंट प्राप्त की जो ये रेलवे लाइन निर्माण मे इस्तेमाल कर रहे थे।
- कुछ समय बाद इन्हे महसूस तो हुआ की यहां कोई पुराना भवन या महल हुआ होगा परन्तु उन्होंने ज्यादा जांच नहीं की।
- पहली बार अलेक्जेंडर कनिघम ने (1853-1856 ) तक पाकिस्तान का काफी बार दौरा किया परन्तु ज्यादा जानकारी हासिल नहीं कर पाए।
- उनके बाद 1921 मे भारत के पुरातात्विक विभाग के हेड सर जॉन मार्सेल के नेतृत्व मे खुदाई के दौरान राय बहादुर दयाराम साहनी द्वारा हड्डपा और राखालदास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो की खोज की गई।
काल निर्धारण -
फेयर सर्विस - 2000 - 1500 BC
DP अग्रवाल (कार्बन 14) - 2300- 1750 BC वर्तमान मे माना गया
CJ ग्रैंड - 2300- 1700 BC
सार्टीमर व्हीलर - 2500 1500 BC
जॉन मार्सल - 3250 -2750 BC
नामकरण - सिंधु सभ्यता को अनेक नाम से जाना जाता है (1 ) सिंधु सभयता , क्योकि यह सिंधु नदी के किनारे की सभ्यता है (2 ) हड्डपा सभ्यता , क्योकि यह पहली जगह है जो खोजी गयी थी इसलिए इसका नाम यह भी पड़ा।
उद्धभव -
विदेशी मत - उनका मानना था कि सभ्यता निर्माण सुमेरियन सभ्यता के लोगो ने किया (मार्सल ,व्हीलर , गार्डनर चाइल्ड , DD कोसांबी ) परन्तु इस बात को सिर्फ विदेशियों ने माना।
स्थानीय मत - भारतीय इतिहासकारो ने माना की सिंधु सभ्यता का उद्धभव द्रविड़ जाती के लोगो ने किया यह बात राखालदास बनेर्जी ने कही। T.N. रामचंद्र ने कहा की यह सभ्यता आर्यो द्वारा विकसित की गई परन्तु यह बात नहीं मानी गयी क्योकि आर्यो का कार्यकाल वैदिक सभ्यता का माना जाता है।
सिंधु सभ्यता की विशेषताए -
(1) यह नगरीय सभ्यता है (2) कांस्य युगीन सभ्यता (3) आगहेतिहासिक सभ्यता (4 ) शांति प्रिय सभ्यता (5 ) व्यापर प्रधान (6 ) विस्तृत सभ्यता (7 ) राजनीतिक ,आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक
राजनीतिक व्यवस्था - इस सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं है इसलिए सिर्फ खुदाई से प्राप्त वस्तुओ से अनुमान लगाया जाता है कि यहां व्यापारी वर्ग ही शासन करता होगा या प्रजातंत्रात्मक शासन रहा होगा।
आर्थिक व्यवस्था - इसमें अनुमान लगाया जाता है की वहा कृषि , पशुपालन से आर्थिक जीवनयापन किया जाता होगा।
सामाजिक व्यवस्था - इसमें दो तरह के भवन प्राप्त हुए है दुर्ग (ऊंचे नगर), निचले नगर जिनसे अनुमान लगाया गया है उस समय कोई जाती प्रथा नहीं होगी जैसे वैदिक सभ्यता के समय थी।
सांस्कृतिक व्यवस्था - उस समय मे मूर्ति निर्माण कला , धातु कला , वस्त्र निर्माण कला पात्र निर्माण कला नृत्य और संगीत कला, लिपि का ज्ञान आदि की व्यवस्था होगी।
सिंधु सभ्यता का विस्तार -
इसके भौगोलिक जगह 4 भागो मे है
(1) उत्तर मे जम्मूकश्मीर से मांडा तक
(2) पच्छिम मे सुत्कन्गेडोर (बलूचिस्तान,पाकिस्तान )
(3) पूर्व मे आलमग़ीरपुर (उत्तरप्रदेश)
(4) दक्षिण मे डायमाबाद (महाराष्ट्र) तक फैली है।
यह सभ्यता त्रिभुजाकार मे फैली है। यह पूर्व से पछिम की ओर 1600 km की लम्बाई मे फैली है और उत्तरसे दक्षिण की और 1400 km तक फैली है।
वर्तमान मे सिंधु सभ्यता के लगभग 1500 स्थान खोजे जा चुके है जिनमे पाकिस्तान मे 400 -500 , भारत मे 900 से अधिक आफ्गानिस्तान मे 2 स्थान की खोज की गई है।
सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगर -
(1) हड्डपा - इसकी खोज 1921 मे दयाराम साहनी द्वारा की गई जो अब पाकिस्तान के प्रांत पंजाब मे रावी नदी के किनारे स्थित है। इसकी खोज सबसे पहले हुई परन्तु दूसरा बड़ा नगर है।
(2) मोहनजोदड़ो - इसकी खोज 1922 मे राखालदास बनर्जी द्वारा की गई जो अब पाकिस्तान के सिंध प्रान्त मे सिंधु नदी के किनारे स्थित है। यह खोज मे प्राप्त सबसे बड़ा नगर है। यहां पक्की ईटो का प्रयोग है।
(3) चंदूहाड़ो - इसकी खोज 1931 मे गोपाल मजूमदार द्वारा की गई जो अब पाकिस्तान के सिंध प्रान्त मे सिंधु नदी के किनारे स्थित है। यह वक्राकार ईंट प्राप्त हुई।
(4) रोपड़ (रूपनगर) - इसकी खोज 1953 मे यगदत्त शर्मा द्वारा की गई जो अब पंजाब मे है।
(5) कालीबंगा - इसकी खोज 1953 मे आमलानंदलाल द्वारा की गई जो अब भारत के राजस्थान राज्य के हुअनुमनगढ़ जिले मे घग्घर (सरस्वती ) नदी के किनारे स्थित है।
(6) रंगपुर - इसकी खोज 1953 मे रंगनाथ राव , माधव स्वरुप वत्स द्वारा की गई जो अब भारत के गुजरात काठीयाबाद सौराष्ट्र छेत्र से भादर नदी के किनारे स्थित है।
(7) लोथल - इसकी खोज 1957 मे रंगनाथ राव द्वारा की गई जो अब भारत के गुजरात के अहमदाबाद जिले मे स्थित है। यहां बंदरगाह था।
(8) आलमगीर पुर - इसकी खोज 1958 मे यगदत्त शर्मा द्वारा की गई जो अब भारत के उत्तरप्रदेश के मेरठ जिले मे हिंडन नदी किनारे स्थित है।
(9) सुरकोतड़ा - इसकी खोज 1964 मे जगपति जोशी द्वारा की गई जो अब भारत के गुजरात के कच्छ जिले मे घग्घर नदी किनारे स्थित है।
(10) राखीगढ़ी - इसकी खोज 1969 मे सूरजभान द्वारा की गई जो अब भारत के हरियाणा राज्य के हिसार जिले मे घग्घर नदी किनारे स्थित है।
(11) बनावली - इसकी खोज 1973 मे रवींद्र सिंह बिस्ट द्वारा की गई जो अब भारत के हरियाणा राज्य के हिसार जिले मे घग्घर नदी किनारे स्थित है।
(12) मांडा - इसकी खोज 1982 मे की गई जो अब भारत के जम्मू कश्मीर मे चनाव नदी किनारे स्थित है।
(13) धौलावीरा - इसकी खोज 1990 मे रवींद्र सिंह बिस्ट द्वारा की गई जो अब भारत के गुजरात के कच्छ जिले मे स्थित है।
प्रमुख आयात -
टिन ,चाँदी मणि ,नीलरत्न - आफ्गानिस्तान
सोना - कोलार (कर्नाटक )
तांबा - खेतड़ी (राजस्थान )
कपास - रोम
मृत्यु संस्कार प्रथा - तीन प्रथा प्रचलित थी
(1) दाह संस्कार
(2) पूर्ण समाधिकरण
(3) आंशिक समाधिकरण
पतन के कारण –
सिंधु प्रथा के पतन के कारण पूर्ण रूप से मान्य नहीं है इसके लिए विद्वानों मे मतभेद है कुछ का मानना है कि इसका पतन बाढ़ से हुआ , कुछ का कहना है जलवायु परिवर्तन , आपदा भूकंप , आर्यो का आक्रमण
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