भक्ति आंदोलन क्या है ? / bhakti andolan (प्रथम भाग ) हिन्दू सम्बंधित

भक्ति आंदोलन का अर्थ  - मध्यकालीन इतिहास के दौरान भक्ति आंदोलन बड़ी तेजी से बढ़ रहा था।  - भक्ति आंदोलन का मतलब था किसी भी जाति , धर्म ,रंग आद...

भक्ति आंदोलन क्या है

भक्ति आंदोलन का अर्थ 

- मध्यकालीन इतिहास के दौरान भक्ति आंदोलन बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। 

- भक्ति आंदोलन का मतलब था किसी भी जाति , धर्म ,रंग आदि से कोई भेदभाव नहीं होगा। 

- भक्ति आंदोलन में सभी जाति वर्ग के लोग सबके लिए एक सामान थे। 

- भक्ति आंदोलन में मोक्ष प्राप्ति को ही ज्यादा महत्व दिया गया था। 

मोक्ष प्राप्ति के मार्ग - मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग थे 

(1) कर्म 

(2) नान 

(3) भक्ति 

भक्ति का अर्थ 

- भक्ति का अर्थ है ईश्वर के प्रति प्रार्थना, भक्ति और सम्पूर्ण भावना 

भक्ति के मार्ग 

- भक्ति करने के दो मार्ग थे 

(1) सगुण भक्ति 

- इस भक्ति में मूर्ति पूजा होती है और ये साकार होते है।

- इस भक्ति में कुछ प्रमुख संत हुए जैसे रमाक्षयी, रामानंद,तुलसीदास, कृष्ण्सयी, चैतन्य, मीराबाई, सूरदास आदि। 

- जैसे कि आप जानते है मीराबाई कृष्ण की पूजा करती थी तो वो एक सगुण भक्ति की संत थी। 

(2) निगुण भक्ति 

- निगुण भक्ति में मूर्तियों की पूजा न होकर विचारो को ज्यादा समझा जाता था। 

- विचारो में ईमानदारी और निराकार होते थे। 

निगुण भक्ति में कुछ प्रमुख संत हुए - कबीरदास , नानकदेव ,रैदास आदि। 

भक्ति आंदोलन की शुरुआत 

- भक्ति आंदोलन का प्रारंभ सबसे पहले दक्षिण भारत में 8वीं सदी में शंकराचार्य जी ने किया था। 

- भक्ति आंदोलन का विस्तार अलवार (जो विष्णु के भक्त थे) और नयनार (जो शिवभक्त थे) ने किया था। 

- इस आंदोलन की शुरुआत इस्लाम और हिन्दू धर्म के लोगो के मध्य अच्छे रिश्ते बनाने हेतु था। 

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत 

अलवार संत 

- अलवार संतो की कुल संख्या 12 थी जिनके नाम है -- 

(1) पोयगई    (2)    भुत्तालवार    (3) मैयालवार     (4) तिरुमालिसे अलवार    (5) नम्मालवार          (6) मधुरकवि अलवार      (7) कुलशेखर अलवार     (8) पेरियालवार      (9) अण्डाल (महिला संत) (10) तांण्डरडिप्पोड़ियालवार        (11) तिरुरपानोलवार         (12) तिरूमगेयालवार 

- इन संतो में नम्मालवार जो कि दक्षिण भारत के रहने वाले थे प्रमुख थे इनके शिष्य मधुरकवि थे। 

- कुलशेखर जो कि त्रावणकोर के राजा थे वो भी अलवार संतो में थे 

- ये सभी वैष्णव धर्म को मानने वाल थे। 

नयनार संत 

- नयनार संतो की कुल संख्या 63 थी जो कि शिव को ज्यादा मानते थे। 

- नयनार धर्म के संथापक शंकराचार्य थे। 

-प्रमुख संतो के मत 

प्रवर्तक               मत  

शंकरचार्य            अद्वैतवाद 

मध्वाचार्य            द्वैतवाद 

निम्बाचार्य           द्वैताद्वैतवाद 

वल्ल्भाचार्य          शुद्धाद्वैतवाद 

रामानुजाचार्य       विशिष्टावाद 


शंकराचार्य (शंकर)

- शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत में कुलाड़ी (केरल) में हुआ था। 

- इनकी मृत्यु केदारनाथ (उत्तराखंड) में हुई थी। 

 शंकराचार्य के चार मठ थे 

(1) उत्तर के बद्रीनाथ में ज्योतिष्पीठ   (2) पच्छिम के द्वारिका में शारदापीठ   

(3) दक्षिण के मैसूर में क्षेत्ररी पीठ   (4) पूर्व के पूरी में गोवेर्धनपीठ 

रामानुजाचार्य 

- इनका जन्म आंध्रप्रदेश में हुआ था ये सगुण भक्ति में विश्वास करते थे और ये वैष्णव धर्म से थे। 

- रामानुजाचार्य ने अद्वैतवाद के विरुद्ध विशिष्टावाद का सिद्धांत दिया था 

निंबकचार्य 

- निंबकचार्य का जन्म मद्रास में हुआ था और ये सनक सम्प्रदाय के संस्थापक थे। 

- इन्होने द्वैतवाद और अद्वैतवाद के मिक्षण द्वैताद्वैतवाद का सिद्धांत दिया था। 

- ये सगुन भक्ति पर विश्वास करते थे ये कृष्णा और राधा को मानते थे। 

रामानंद 

- इनका जन्म प्रयाग के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था न्होने उत्तर भारत में भक्ति का प्रसार किया था। 

-  ये सगुण भक्ति (राम) में विश्वास करते थे और जातिवाद को नहीं मानते थे। 

- ये स्त्रियों का सम्मान करते थे और इनके समूह में स्त्रियाँ भी आ सकती थी। 

- इनके कुल 12 शिष्य थे - रैदास , कबीर , सेना , पद्मावती (स्त्री) आदि। 

- इन्होने हिंदी भाषा में भक्ति का प्रसार किया था। 

कबीर 

- कबीर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था और इनकी माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था। 

- इनके गुरु रामानंद थे और निर्गुण भक्ति को मानते थे और इनका मत था की हिन्दू मुस्लिम्स एक होकर रहे। 

- कबीर के शिष्य थे दादू , कमाल और कमाली और इनके दोहो का संकलन बीजक में मिलता है। 

भक्ति आंदोलन के संतों द्वारा दी गई प्रमुख शिक्षाएं 

- भक्ति आंदोलन  का मतलब था एकेश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा। 

- इनका मुख्य उदेश्य था की सभी को एकता में रहना है किसी के साथ धर्म, जाति या रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। 

- इनकी प्रमुख शिक्षा थी की सभी तरह के कर्मकांडो और यज्ञो का परित्याग से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। 

- संत जिस भाषा में उपदेश देते है वो प्राकृत भाषा होती थी जो सबको आसानी से समझ आ जाती थी 

भक्ति आंदोलन में महिलाओं की भूमिका 

- भक्ति आंदोलन के अलवार संतो में एक प्रमुख संत अंडाल भी थी। 

- भक्ति आंदोलन में महिलाओं का होने से पता चलता है की उस समय महिलाओं के लिए भी आंदोलन ने कार्य किये होंगे। 

- भक्ति आंदोलन ने महिलाओं की स्थिति को सुधारने के काफी प्रयास किये गए थे। 

- अण्डाल, मीराबाई जैसी महिला संत इसका प्रमुख उदाहरण थी। 

भक्ति आंदोलन का इस्लाम के आक्रमण से सम्बन्ध 

- भक्ति आंदोलन का विशेष उदेश्य था कि सभी धर्मो में एकता होना। 

- इस्लाम धर्म के उदय से भारत में धर्म के नाम पर युद्ध होने लगे थे। 

- इसलिए भक्ति आंदोलन को शुरू किया गया था जिस से सभी धर्मो में आक्रमण की स्थिति न हो। 


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